Gulzar ki shayari
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शाम से आँख में नमी सी है। आज फिर आप की कमी सी है।
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शाम से आँख में नमी सी है। आज फिर आप की कमी सी है।
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यादा कुछ नहीं बदलता उम्र के साथ। बस बचपन की जिद्द समझौतों में बदल जाती हैं।
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तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा तो नहीं। तेरे बिना पर ज़िन्दगी भी लेकिन ज़िन्दगी तो नहीं।
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मैं हर रात ख्वाईशो को खुद से पहले सुला देताहूँ। हैरत यह है की हर सुबह ये मुझसे पहले जग जाती है।
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खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं। हवा चले न चले दिन पलटते रहते है।
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वो चीज़ जिसे दिल कहते हैं,। हम भूल गए हैं रख के कहीं।
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SLIDE NO 9
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कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ। उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की।
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आ रही है जो चाप क़दमों की। खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद ।
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वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी वो नफ़रत भी तुम्हारी थी। हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे मांगते वो शहर भी तुम्हारा था। वो अदालत भी तुम्हारी थी ।
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SLIDE NO 12
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तुझे पहचानूंगा कैसे? तुझे देखा ही नहीं। ढूँढा करता हूं तुम्हें अपने चेहरे में ही कहीं।
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Thank You
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