SLIDE NO 2

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सर के बाल सम्भाल गोरी तेरे सीने पर लटकता है। धिक्कार है तेरी जवानी का तेरा यार रोड पर भटकता है।

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हुस्न है पानी, अकड़ कर बैठना अच्छा नहीं। दिल मुझे को दे दो ज्यादा भरना अच्छा नहीं।

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छुरी न लो हाथ में कलम ही रहने दो। नयनों के तीर ही काफी है, अलग ही सनम को रहने दो।

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कुछ हाथ से उसके फिसल गया। वह पलक झपक कर निकला गया।

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बस में तेरे बैठने से शीशे भी कड़क जाते है। बस में बैठने की जगह हो न हो तेरे चाहने वाले इसे है, की बहार ही लटक जाते है।

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जब काँलेज से निकलती हो तो, किताब को सीने से लगाती हो। क्या मर गया हूं मै जो तुम ही सम्हालती हो।

SLIDE NO 8

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इस तरह हम प्रेम की भूख मिटा लेता हूँ। वोसे बाजी का शैख़ अगर होता तो, तेरे फोटो को ओठो से लगा लेता हूँ।

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ए इलाही उम्र बारह साल की। चड्ती जवानी में बहुत बवाल की, ये चीज है कमाल की ।

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शौक न करून क्या दो दिन की जवानी है यह। मिट्टी का जिस्म और छनभंगुर जिंदगानी है यह।

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परायी चीज देख जलता मर्दों की ये चाल है। देखते ही कहता खूबसूरत ये माल है।

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मेरी जुल्फें देखकर बदल भी शरमाये। देखकर पयोधर जमाना भी ललचाये।

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हुस्न का न गोरी दिखाओ गमंड। हो जायेगा हुस्न एक दिन खंड खंड।

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Thank You

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